आरुणि उद्दालक की गुरु भक्ति || हिन्दी कहानियाँ || Hindi Inspirational Stories

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प्रेरणादायक हिंदी कहानी संग्रह कथा-कहानी ज्ञानवर्धक किस्से | Hindi Kahani or Story Collection

हिंदी कहानियाँ एक ऐसी विधा जो जीवन को, परिस्थितियों को अपने में लेकर उलझी हुई समझ को, सुलझा देती हैं. हिंदी कहानी हमारे व्यक्तित्व को एक दर्पण की भांति हमारे सामने प्रेषित करती हैं जिनसे हमें अपने कर्मो का बोध होता हैं. माना कि कहानियाँ काल्पनिक होती हैं पर कल्पना परिस्थिती के द्वारा ही निर्मित होती हैं. पाठको को लुभाने एवं बांधे रखने के लिए कई बार भावों की अतिश्योक्ति की जाती हैं लेकिन अंत सदैव व्यवहारिक होता हैं, यथार्थता से परिपूर्ण होता हैं.

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आरुणि उद्दालक की गुरु भक्ति

आरुणि उद्दालक की गुरु भक्ति
आरुणि उद्दालक की गुरु-भक्ति की कथा भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो शिष्य की अपने गुरु के प्रति अनन्य समर्पण और निष्ठा को दर्शाती है। इस कथा का मूल स्रोत महाभारत और वेद-पुराणों में मिलता है, और यह शिक्षा एवं संस्कारों के संदर्भ में आदर्श मानी जाती है.

कथा की पृष्ठभूमि
प्राचीन भारत में आयोदधौम्य नामक एक श्रेष्ठ ऋषि का गुरुकुल था। उनके प्रमुख शिष्यों में उपमन्यु, वेद और आरुणि (जो बाद में उद्दालक नाम से विख्यात हुए) शामिल थे। आरुणि पांचाल देश के निवासी थे और अपने गुरु के अत्यंत आज्ञाकारी शिष्य थे।

गुरु की आज्ञा और परीक्षाएं
एक दिन घनघोर वर्षा हुई, जिससे गुरु-आश्रम के खेत की मेड़ टूट गई और पानी बहने लगा। गुरु आयोदधौम्य ने आरुणि को क्यारी की टूटी हुई मेड़ को बांधने हेतु भेजा। आरुणि ने पूरी निष्ठा से अपने कार्य में लगन दिखाई, लेकिन जल के प्रबल प्रवाह के कारण जब भी वह मिट्टी लगाता, मेड़ टूट जाती। उसने कई बार प्रयास किया, किंतु असफल रहा। आरुणि के मन में यह विचार आया कि यदि वह गुरु की आज्ञा नहीं निभा पाया तो उसका शिष्यत्व व्यर्थ है। उसने स्वयं को क्यारी की टूटन के स्थान पर लेटा दिया।

समर्पण और गुरु के आशीर्वचन
कई घंटे बीत जाने के बाद भी जब वह लौटकर नहीं आया, तब गुरु और अन्य शिष्य उसकी खोज में निकले। खेत पर जाकर उन्होंने पुकारा—"आरुणि, तुम कहां हो?" गुरु का वचन सुनकर आरुणि ने उत्तर दिया कि "मैं यहां हूं—मेंड़ पर लेटा हूं ताकि पानी न निकले।" गुरु अपने शिष्य के इस समर्पण और भक्ति को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा—"वत्स, आज तुमने अप्रतिम गुरु-भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया है। आज से तुम उद्दालक (जो जल से उत्पन्न हुआ) के नाम से विख्यात होगे। वरदान देता हूं कि समस्त वेद और शास्त्र तुम्हारी बुद्धि में स्वतः समाहित हो जाएँगे।" गुरु के आशीर्वचन से आरुणि अत्यंत प्रसन्न हुआ और परम् विद्वान बना।

कथा की सांस्कृतिक प्रासंगिकता
आरुणि की कथा भारतीय शिक्षा प्रणाली के मूल्यों, खासकर ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ के शिखर को दर्शाती है। शिष्य का कर्तव्य केवल ज्ञान अर्जन तक सीमित नहीं, वह अपने गुरु, विद्या और सेवा भाव में पूर्ण निष्ठा रखता है। आरुणि का त्याग—अपने कर्तव्य को सर्वोच्च मानकर अपनी शारीरिक पीड़ा को भी पीछे छोड़ देना—आज भी आदर्श प्रस्तुत करता है।

आरुणि उद्दालक का आगे का जीवन
गुरु के आशीर्वाद से आरुणि ‘उद्दालक’ नाम से महर्षि बने। आगे चलकर वे महान ऋषि माने गए और उनकी संतानों एवं शिष्यों में नचिकेता (पुत्र) और स्वेतकेतु (पुत्र) जैसे कई उच्चकोटि के मनीषी हुए। उनकी शिष्य परंपरा में अष्टावक्र जैसे ज्ञानी हुए, जिनकी ‘अष्टावक्र गीता’ योग और ज्ञान का सर्वोच्च ग्रंथ मानी जाती है।

कथा का संदेश
गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा और अखंड समर्पण जीवन में सफलता का मार्ग बनाता है।
आज्ञापालन और सेवा के साथ सीखना ही वास्तविक विद्या है।
त्याग, तप, और दृढ़ निष्ठा भारतीय संस्कृति के केंद्रीय मूल्य हैं।
सच्ची गुरु भक्ति से अद्भुत ज्ञान और आशीर्वाद सहज उपलब्ध हो सकते हैं।

उपरोक्त संदर्भों में आरुणि उद्दालक की गुरु-भक्ति की सम्पूर्ण कथा सारांश रूप में दी गई है, जो गुरु-शिष्य परंपरा, तपस्या, त्याग और सत्यनिष्ठा का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है।

| आप सभी पाठकों का मेरा धन्यवाद है जो आप इस प्रसंग को पंढे।|

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